समीक्षा : आल द वे होम- अर्चना मिराजकर (विज्ञान कथा उपन्यास) भारत के विभिन्न भाषाओं में विज्ञान कथाओं के प्रणयन में इधर त्वरा आयी है, भले ही वे अभी आम मानस में अपेक्षानुसार लोकप्रिय नहीं हो सकी हैं। किन्तु विज्ञान कथा उपन्यासों का प्रणयन तो बहुत कम हुआ है। उपन्यास लेखन एक चुनौतीभरा दायित्व है और पूरी तैयारी और फुरसत की मांग करता है। विज्ञान कथा उपन्यास लेखन तो और भी चुनौतीपूर्ण है। इस चुनौती को स्वीकार कर अर्चना मिराजकर ने अपने विज्ञान कथा उपन्यास आल द वे होम के प्रकाशन से विज्ञान कथा प्रेमी पाठकों एक नायाब तोहफा दिया है। समीक्ष्य उपन्यास सुदूर भविष्य के मानव अस्तित्व, उसके समाज और पारिवारिक जीवन को केन्द्रबिन्दु बनाता है। धरती पर निरंतर युद्धरत मानव सभ्यता विनष्ट हो चुकी है। गनीमत है कि कुछ वैज्ञानिकों की सदबुद्धि से मानव चन्द्रमा, मंगल और यूरोपा पर पहुंच कर अपना अस्तित्व बचा पाया है । और वहां से भी चार पांच हजार साल बाद अन्तरतारकीय यात्राओं की क्षमता हासिल कर वह अन्य तारामंडलो को भी आबाद कर रहा है। इसमें ही एक दूसरे तारामंडल के धरती सदृश ग्रह 'स्वर्ग' पर मानव सभ्यता अपने उत्कर्ष पर है। जहां का अपना सूर्य 'रवि' उसे ऊर्जित कर रहा है। यह सभ्यता है तो धरती प्रसूता ही किन्तु यहाँ के लोगों में मानवीय कमजोरियां - दुर्भावना, ईर्ष्या, द्वेष सहित सारी नकारात्मकता मिट चुकी हैं। 'स्वर्ग' में 'रामराज्य' अपने आदर्श रुप में कायम हो गया है। लोग उन्मुक्त जीवन जी रहे हैं। कोई दुर्भाव नहीं, वैमनस्य नहीं। और हां यहां के लोगों में उन्नत जीन अभियांत्रिकी से पंख उग आये हैं और शरीर प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम है। अर्थात इन्हें भोजन की जुगाड़ नहीं करनी है। बस फ्रूट जूस के रुप में एनेर्जी ड्रिंक का चलन है। जैसे ब्रेव न्यू वर्ल्ड में लोग 'सोमा' टैबलेट के आदी हैं। यह एनर्जी ड्रिंक भी अपने पंखों से उड़ान भरने के बाद शाम को वैसे ही पीने का चलन है जैसे हम शाम की चाय लेते हैं। जाहिर है खाने की जुगाड़ से मुक्त यह समाज प्रौद्योगिकी उन्नति और चिन्तन मनन में बहुत आगे है। लेखिका ने बड़ी ही कुशलता और खूबी से स्वर्गवासियों के जीवन का खाका खींचा है जो प्रकारान्तर से धरती के ही मौजूदा जीवन की विषमताओं, विरोधाभासों और प्रतिबन्धों से मुक्त होने की एक मानवीय चाहत है। स्वर्ग के लोग किसी भी तरह की नकारात्मकता से दूर हैं, मानवीय रिश्तों में किसी तरह के दबावों या वर्जनाओं से सर्वथा मुक्त। यहां तक कि यौन संबंधों में भी कोई प्रतिबन्ध नहीं। बस संतति निर्वहन के लिये बच्चे की उम्र 15 वर्ष होने तक नर नारी एक "पैरेन्टल पैक्ट" में बंधते हैं। फिर मुक्त जीवन व्यतीत करते हैं।इच्छानुसार पार्टनर चुन सकते हैं, सम्बन्ध बना सकते हैं, कोई रोक टोक नहीं। और जब चाहें इच्छामृत्यु का भी वरण कर सकते हैं। इच्छा मृत्यु का वरण जीवन के उद्येश्य पूरा कर लेने पर लोग करते हैं क्योंकि वहां उम्र बढ़ती नहीं, एजिंग नहीं है, स्वाभाविक मृत्यु नहीं है। बस 'आखिरी विश्राम' का प्रावधान है यानि इच्छा मृत्यु। उपन्यास की मुख्य पात्र आरुषि के इर्द गिर्द कथानक घूमता है जो एक जैवीय संतान है। 'पैरेन्टल पैक्ट' के अधीन 'स्वर्ग' के दम्पति दो तरह से बच्चों को पाल सकते हैं, एक तो परखनली शिशु जो वहां अधिक प्रचलन में हैं या फिर जैवीय सन्तान जो अपवाद तौर पर हैं। उपन्यास की प्रमुख पात्र आरुषि एक जैवीय सन्तान है। आरुषि स्वर्ग के वैज्ञानिक शेरलक द्वारा परिकल्पित और डिजाइन की गई एक अन्तरिक्ष यात्रा की टीम की सदस्य है। यह अन्तरिक्ष यात्रा मानवोत्पत्ति के मूल ग्रह धरती पर जीवन के उद्भव की शाश्वत गुत्थी सुलझाने को अग्रसर है। उस धरती पर जहां अब जीवन शेष नहीं। किन्तु जीवन के उद्भव के सूत्र हो सकते हैं। आरुषि को विनष्ट हुई धरती के जगह जगह उत्खनन पर एक कालपात्र में अपनी मां के साथ हूबहू खुद अपनी ही तस्वीर दिखने पर घोर हैरत होती है। और यहीं वह जीवन के सातत्य, आत्मा की अजरता अमरता और पुनर्जन्म के दार्शनिक- आध्यात्मिक पहलू से रूबरू होती है। अर्थात धरती पर वह खुद अल्पायु में काल कवलित हो गयी थी और अपनी मां की इस इच्छा कि अगले जन्मों में भी उनका साथ रहे को अब वह साक्षात चरितार्थ होता देख रही है। यहां उपन्यास पराभौतिकता का संस्पर्श करता है। पुनर्जन्म की अवधारणा से जुड़ती यह औपन्यासिक कृति हतप्रभ से हो उठे पाठक के मन में विचारों का एक झंझावात उठाकर समाप्त होती है। उपन्यास मां और बेटी के बीच के गहरे आत्मीय संबन्ध के विविध संवेदनात्मक पहलुओं को उजागर करता है जो पाठक को द्रवित करेगा। धरती पर युद्ध की विभीषिका के साथ ही पिघलते ध्रुवों और सूखते सिमटते ग्लेशियरों की चर्चा फ्लैशबैक में हुई है। आखिर अनवरत भयानक युद्ध ही धरती पर मनुष्य प्रजाति के समूल नष्ट होने का कारण बन जाता है। मानव देह और अंग व्यापार, तरह तरह के भयावह शोषण से आक्रांत मानवता शायद इसी अन्त को डिजर्व करती थी। अर्चना मिराजकर के इस विज्ञान कथा उपन्यास का स्वागत किया जाना चाहिए। The writing of science fiction short stories has certainly seen an unprecedented and rapid growth in various Indian languages, even though they may not have become as popular as expected among the masses yet. However, the appearances of science fiction novels are still few and far between. Novel writing is a challenging enterprise that demands complete dedication and time. Science fiction novel writing is even more challenging. Fulfilling this challenge, Archana Mirajkar has given readers a rare gift in the publication of her SF novel All the Way Home. All the Way Home focuses on human existence, its social set-up and family life in the far future. Due to constant warfare, human civilization was destroyed on Earth. The only consolation is that with the help of some astute scientists, humans were saved from extinction by going to the Moon, Mars and Europa. After this exodus, it took a further four to five thousand years to develop the capability for interstellar travel after which humans were able to populate other solar systems. Planet "Svarga" is the Earth-like counterpart of one of these star systems and human civilization is the most advanced here. The name of the sun powering this planet is Ravi. This Earth-like civilization is unique in that the human weaknesses of ill-feelings, envy, hatred along with all pessimism have been eradicated. "Ramrajya" has been established in its ideal state here. People live a life of freedom. No negative feelings, no unpleasantness. Moreover, advanced genetic engineering has allowed people to grow wings and the human body is capable of photosynthesis. This means that people no longer need to procure food. Energy drink in the form of fruit juice is the norm much like the addiction to the tablet "soma" in The Brave New World. People have this energy drink in the evening while flying around using their wings like we drink tea. Freed from the need of eating, this society is understandably quite advanced in both technological progress as well as in contemplation and meditation. The author has skillfully and beautifully portrayed the life of the "Svargvasis" or the people of planet Svarg. It offers an alternative to our contemporary life on Earth stemming from a human desire to be free from its disparities, contradictions and bindings. The people of Svarg are untouched by any kind of negativity and always free from any pressures or restrictions in human relationships. Even in sexual relations, there are no strictures. Only for discharging of child rearing duties do a man and woman get tied in a "parental pact" till the child is 15 years of age. They return to an independent existence after the pact is over. People can choose partners according to their liking and form relationships without any restrictions. They can also choose to die whenever they want. People voluntarily choose death after achieving their life goals because on Svarga there is neither ageing nor natural death. There is simply the provision of "final rest" i.e., self-willed death. The story revolves around the protagonist of the novel, Aarushi. On Svarga, couples can have children in 2 ways under the "parental pact," the first is test tube babies who are more popular or else biological offspring who are the exceptions. Protagonist Aarushi is a biological child. She is a member of the space travel team envisaged and designed by the reputed scientist named Sherleck. This space mission is proceeding towards solving the eternal mystery of the origin of life at the birthplace of humans, the native planet Earth. The Earth where there's no life remaining now but there could be some clues regarding the origins of life. Aarushi is absolutely stunned to see a picture resembling herself with her mother in a time capsule found in one of the many excavations being conducted at different spots on wrecked Earth. And it is here that she is confronted with the philosophical and spiritual aspects of reincarnation, the continuum of life and the invincibility and immortality of the soul. Having died at a young age on Earth in one of her previous births, she is now able to witness the real life unfolding of her mother's wish that their relationship be preserved in future births too. Here the novel enters into metaphysical realms incorporating the concept of reincarnation and ends at the point where the reader has been shaken to the core and is left with an avalanche of ideas to reflect upon. The novel brings to light the different emotional facets of the soul-deep relationship between the mother and daughter, which will greatly move the reader. In flashback, there is a discussion of the horrors of war along with melting polar caps and drying shrinking glaciers. Finally, it is terrible warfare that becomes the cause for the extinction of the human species on Earth. Afflicted with human trafficking and organ trade as well as various forms of terryfying exploitation, perhaps humanity deserved this kind of an end. This novel by Archana Mirajkar must be welcomed whole heartedly. (Translation by Reema Sarwal)